मान्यवर कांशीराम साहब से जुड़े कुछ रेल संस्मरणों की चर्चा आज
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यह साहब की तस्वीर 05 नवम्बर 1985 एक साधारण से कानपुर के गेस्ट हाउस में प्रातः काल #इपंले द्वारा खींचीं गई थी । साहब मगधएक्सप्रेस ट्रेन से वाराणसी में प्रोग्राम करके आये थे और बेहद थके हुए थे ।
मैं भी इस कारण बड़े ही संकोच में धीरे धीरे कैमरा निकाल कर उसमें फ़्लैशगन लगा कर एक फोटो खींचने की तैयारी कर रहा था कि अचानक साहब मुझसे अपने चिरपरिचित व्यंग्यात्मक अंदाज़ में कहते हैं कि तूँ सबेरे सबेरे अखाड़े के पहलवानों की तरह क्या तैयारी कर रहा है ? अरे फ़ोटो खींचनी है तो जल्दी खींच ! मैं थका हुआ व रात भर का जागा हुआ हूँ थोड़ा सा आराम करना चाहता हूँ।
बहुजन समाज को जानकर आश्चर्यमिश्रित दुःख भी होगा कि उस पूरी रात साहब मगधएक्सप्रेस की जनरल बोगी में जरा सी जगह में बैठकर व जागकर मुग़लसराय से कानपुर तक आये थे कारण ये था कि जिस कंपार्टमेंट में साहब का रिजर्वेशन था उसे मुग़लसराय स्टेशन पर तकनीकी खराबी आ जाने के कारण काट दिया गया था।
चूंकि साहब का प्रोग्राम इटावा और कानपुर होने के कारण साहब ने हर हाल में आना जरूरी समझा। ताज्जुब तो मुझे उस समय और ज्यादा हुआ जब मैंने देखा कि साहब जो अटैची लिए हुए थे वह एक ओर पैजामे के नाड़े से बंधी हुई थी….इसका जब कारण मैंने साहब से जानना चाहा तो साहब ने बताया कि ट्रेन में अत्यधिक भीड़ भाड़ होने की वजह से एक ओर का लॉक चढ़ते समय टूटकर बेकार हो गया है इसलिए मैंने कोई और व्यवस्था न होने के कारण इसे पैजामे के नाड़े से बांधना उचित समझा ।
कानपुर में ट्रेन से उतर कर साहब की मुलाकात मुझसे ही सबसे पहले पहल होती है साहब पूछते हैं कि तूँ अकेले ही आया है मैंने कहा कि श्री रामस्वरूप जी जो कि मेरे रेलवे के साथी भी हैं वह कानपुर में ही रहते हैं उन्होंने भी आने का वादा किया था लेकिन अभी मिले नहीं हैं । तब साहब ने पूछा कि कानपुर बामसेफ यूनिट से कोई नहीं है क्या ? इतनी देर में अर्मापुर स्टेट कालोनी (डिफेंस)के दो साथी जो कानपुर बामसेफ यूनिट से थे व श्री रामस्वरूप जी भी दूर से आते दिखाई दे गए थे ।
कानपुर स्टेशन से बाहर निकल कर साहब सहित हम पाँचों लोगों ने एक साधारण सी चाय की दुकान पर सड़क पर खड़े खड़े ही चाय पी। चाय पीने के बाद जब हम चलने लगे तो मैंने उस समय युवा होने के नाते जोश में नारा लगा दिया “कांशीराम जी तुम संघर्ष करो हम तुम्हारे साथ हैं।” मान्यवर साहब मंद मंद मुस्कुरा रहे थे….बाद में गेस्ट हाउस में साहब ने अपने मुस्कराने का कारण भी बताया कि आसपास लोग क्या सोच रहे होगें ? कि एक व्यक्ति के पीछे चार लोग संघर्ष का नारा बुलंद कर रहे हैं ? क्या सफल होगा इनका संघर्ष ?
लगभग आधा घंटे विश्राम के बाद एक खटारा सी खस्ताहाल जीप जो की बामसेफ कानपुर यूनिट वालों ने कर रखी थी से हम पांचों लोग इटावा के लिए चल दिये । इटावा के प्रोग्राम के बाद साहब का सायंकाल कानपुर में प्रोग्राम था । हम इटावा बामसेफ यूनिट वाले उस समय एक जीप की भी व्यवस्था नहीं कर सके थे इसलिए जनरल सेकंड क्लास का Rs.7.70का टिकट लेकर साहब को 86 डाउन आसाममेल गाड़ी जिसमें बहुत ही भीड़ भाड़ होती थी बैठा दिया था । साहब को बैठने की जगह भी नहीं मिली थी साहब खड़े हुए थे कि मेरे एक परिचित बैठे हुए थे उन्होंने थोड़ा सा खिसक कर सीट के एक कोने में साहब को टिकने भर की जगह दे दी थी।
इसी प्रकार जब साहब पहले पहल इटावा आये थे तो वापसी में 11अप सियालदह दिल्ली एक्सप्रेस से मैंने मि.के. राम (पुरूष)उम्र 48 साल सेकेंड क्लास स्लीपर कोच में रिजर्वेशन करा दिया था….तब दिल्ली का किराया मात्र Rs.14.50 व एक रात का स्लीपिंग चार्ज Rs.5.00 हुआ करता था। गाड़ी उस दिन लगभग डेढ़ दो घंटे लेट हो गई थी ।
साहब दिन भर में थकान से चूर चूर हो जाने के कारण RMS के ठेले जिन पर डाक विभाग के गाड़ी से उतार कर बैग लादे जाते हैं उसी एक प्लेटफॉर्म पर पड़े ठेले पर बेसुध होकर सो गए थे। गाड़ी आने पर जब मैंने जगाया और गाड़ी आ रही है की सूचना दी तो साहब ने सबसे पहले यात्रा टिकट मांगा…मैंने कहा कि गाड़ी में दे दूँगा तो उन्होंने कहा कि गाड़ी में नहीं अभी दे दे !…और टिकट ही से जुड़ा जो एक दिलचस्प किस्सा सुनाया वह आप भी सुनिए !!
एक बार साहब को झाँसी में कैडर लेने जाना था कुछ साथियों ने साहब को ट्रेन में तो बैठा दिया लेकिन जल्दीबाजी में साहब को यात्रा टिकट देना भूल गए । अब झाँसी स्टेशन पर साहब को भी ध्यान आया कि टिकट तो मेरे पास है ही नहीं अब क्या करूँ….साहब के दिमाग में जो तरक़ीब आई वह यह थी कि घंटे आधे घंटे गेट पर से टिकट चेकिंग स्टाफ के हटने का इंतज़ार कर लूँ जब ये हट जाएगा तो चुपके से निकल लूँगा । यही साहब ने किया भी….साहब कहने लगे कि यदि बग़ैर टिकट पकड़ा गया तो कल के अखबार में खबर होगी कि बामसेफ , डी एस फोर के राष्ट्रीय अध्यक्ष बिना टिकट पकड़े गए तब तक बसपा नहीं बनी थी ?
दूसरा किस्सा साहब ने रेल से जुड़ा जो बयां किया…. वह कुछ यों था ,साहब को अजमेर जाना था उन दिनों अज़मेर शरीफ का मेला चल रहा था ट्रेनों में अत्यधिक भीड़ भाड़ थी साहब को जिस ट्रेन से जाना था साहब ने इंजन से लेकर गार्ड के डिब्बे तक देखा कहीं भी पैर धरने को जगह नहीं थी…. कि साहब ने देखा कि उस ट्रेन के गार्ड ने साहब से जयभीम का अभिवादन किया और ट्रेन पर आने का सबब पूछा साहब ने बताया कि अजमेर जाना था लेकिन ट्रेन में तो कहीं जगह भी नहीं है तब गार्ड ने कहा कि मेरी ड्यूटी अजमेर तक ही है और में भी बहुजन समाज से ही हूँ आप मेरे साथ मेरे कंपार्टमेंट में चलिए ।
अब जब ट्रेन अजमेर पहुँची तो बामसेफ वाले पूरी ट्रेन देखकर साहब को ट्रेन में न पाकर बुझे मन से वापस जा रहे थे कि सबने साहब को गार्ड के डिब्बे से उतरते हुए देखा तो सबके उतरे चेहरे खिल चुके थे ।
आज के लिए बस इतना ही मिलते हैं कल किसी नए संस्मरण के साथ , तब तक के लिए –
जयभीम
जय_मान्यवर_कांशीराम_साहब
-Sobran Singh सर की वॉल से
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