विजयदशमी पर एक विमर्श- महिषासुर व रावण को अपना पूर्वज मानने वाली जमात बढ़ने लगी हैं.

विजयदशमी पर एक विमर्श-महिषासुर व रावण को अपना पूर्वज मानने वाली जमात बढ़ने लगी हैं.

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विजयदशमी अर्थात जीत की दशमी!
किसकी जीत?किस पर जीत?कौन जीता?कौन हारा?किसे मारा गया?किसने मारा?क्यों मारा?किसी की मृत्यु पर उल्लास क्यो?किसे मनाना चाहिए मृत्यु पर उल्लास?मरने वाले कौन लोग थे?मरने वाले किनके पूर्वज थे?मारने वाले किनके पूर्वज थे?मारने की याद हर साल किन्हें दिलाई जाती है और क्यों?क्या मरने वालों की संतानें जानती हैं कि मृतक या वध किया गया पात्र उनका पुरखा था या उनके पुरखों की हत्या का यह प्रतीक है?ऐसे ही अनगिनत सवाल खड़े करते हैं मृत्यु पर आधारित जश्न के ये त्यौहार जिन पर पहले तो नही पर शिक्षा मिलने के बाद तर्क शक्ति का प्रयोग करने वाली नई पीढ़ी अब सवाल-जबाब करने लगी है।मनुवादियो ने कहा कि कुछ मत जानो,जो कहा सिर्फ उसे मानो पर अब जिज्ञासु प्रबृत्ति ने ऐसा कौतूहल जन दिया है कि पहले जानो,तब मानो।
पूर्व में ऐसा था कि जैसे कोई शेर का बच्चा मेमनों की भीड़ में खो गया जो जवान होने के साथ मेमनों के साथ रहते-रहते मेमनों जैसा बोलने व आचरण करने लगा लेकिन कालांतर में जब कोई उसकी जमात का शेर मिला व उसे अहसास कराया कि तुम मेमना नही वरन शेर हो तो उसके अंदर शेर सा व्यवहार उत्पन्न हो सका।ठीक ऐसे ही हजारो वर्ष से जो हमारी बहुजन आबादी है वह गुलामी की जंजीरों में जकड़ी होने से उसकी बुद्धि व विवेक मनुवादियों के वहां बंधक पड़ गयी थी जो शिक्षा के साथ अपने बंधनो को तोड़ स्वतंत्र होने की तरफ अग्रसर है तभी तो उस महिषासुर को जिसे हम कलंकित,असुर,राक्षस,बुरा चरित्र का आदि कहकर हेय दृष्टि से देखते थे आज उसका शहादत दिवस,उसे मारने का मंचन करने पर मुकदमा दर्ज करवाने की शुरुवात व देवी दुर्गा की जगह महिषासुर को अपने पिता की दृष्टि से देखते हुये उसे सार्वजनिक तौर पर चुम्बन लेने तक कि साहसिक स्थितियां पैदा होने लगी हैं।
सोशल मीडिया पर वायरल यह चित्र जिसमे एक बेटी अपने पुरखा महिषासुर को श्रद्धावश चुम्बन कर रही है,बहुत कुछ बयां कर रहा है।अब वह संकोच खत्म होने लगा है कि महिषासुर या रावण को अपना मानने वाले या अपने कुल परम्परा का जानने वाले लोग छुपने वाले नही है बल्कि उन साजिशों को समझने लगे हैं जिनके तहत उनके राजाओं/नायकों को कथित असुर घोषित कर छल से मार डाला गया।
आदिवासी बेटी डा सुषमा अपने नाम के साथ असुर जोड़कर खुद को पूरे गर्व के साथ असुर पुत्री घोषित कर रही है।झारखंड के मुख्यमंत्री शिबू सोरेन जी रावण दहन पर रावण को जलाने से इनकार करते हुये रावण को अपना पूर्वज कह चुके हैं।तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री करुणानिधि जी की बेटी कनिमोझी जी खुद को असुर/शूद्र पुत्री संसद में कह चुकी हैं।समाजवादी पार्टी के प्रोफेसर रामगोपाल यादव जी समूची ओबीसी कम्युनिटी को राज्यसभा में शूद्र कह चुके हैं।छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जी के पिता जी व छत्तीसगढ़ के पेरियार नाम से विख्यात नन्द कुमार बधेल जी(पूर्व विधायक) रावण को बहुजनो का पूर्वज बताते हुये “रावण को मत जलाओ” नामक किताब लिख चुके हैं जो वर्तमान में प्रतिबंधित है।प्रख्यात लेखक सुभाष गुप्ता जी अपना नाम मुद्राराक्षस लिख रखे हैं।
सोचने का विषय है कि वेद,पुराण या हिन्दू शास्त्र/स्मृतियां/रामायण/महाभारत आदि आर्य ऋषियों या विद्वानों ने लिखे हैं जिसमे कहीं भी किसी राक्षस को व्यभिचारी,बलात्कारी नही बताया गया है जबकि उन्ही के द्वारा ब्रम्हा,विष्णु,इंद्र आदि को क्या कुछ करते नही लिखा गया है?
इस देश का असुर/राक्षस अर्थात मूलनिवासी अपने स्वाभिमान से समझौता नही करता रहा है।वह ब्यभिचारी, अन्यायी,सुरासेवक नही था फिर वह कथित राक्षस हेय क्यो?कोई ज्ञानी आर्यो द्वारा लिखी किताबो से ही यह बताए तो कि रावण,महिषासुर,हिरणकश्यप, बलि आदि बुरे कैसे थे?उनके बुरे कर्म क्या थे तथा कथित सुरों के अहिल्या,सरस्वती,बृंदा,तुलसी आदि के साथ घटित कृत्य नैतिकता की कसौटी पर खरे कैसे हैं?राक्षस अर्थात रक्ष संस्कृति के लोग भयानक,कुरूप व मेनका,उर्वसी की संस्कृति के लोग आदरणीय,गजब का कॉन्सेप्ट है लेकिन अब पोल-पट्टी खुलने लगी है और इन कथित राक्षसों के खानदान के लोग अब रिएक्ट करने लगे हैं यह एक बहुत बड़ी सांस्कृतिक चेंज है।

-चंप्रधान संपादक-“यादव शक्ति”/कंट्रीब्यूटिंग एडिटर-“सोशलिस्ट फ़ैक्टर”द्रभूषण सिंह यादव

 

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